ग्रामीण विकास मे सामुदायिक रेडियो की भूमिका: एक अध्ययन
Author Affiliations
- 1महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा 442001
Res. J. Language and Literature Humanities, Volume 3, Issue (6), Pages 8-14, June,19 (2016)
Abstract
एक ऐसा रेडियो केन्द्र जो कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, सामुदायिक विकास, संस्कृति सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रसारण के साथ-साथ समुदाय के लिए तात्कालिक प्रासंगिता के कार्यक्रमों का प्रसारण करता है| सामुदायिक रेडिओ की संज्ञा दी जा सकती हैं| सामुदायिक रेडियो को किसी एक परिभाषा में बाँधना सम्भव नहीं है। प्रत्येक देश के संस्कृति सम्बन्धी क़ानूनों में अन्तर होने के कारण देश और काल के साथ सामुदायिक रेडियो की परिभाषा बदल जाती है। फ्रांस, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड जैसे कई देशों में एक विशिष्ट प्रसारण क्षेत्र के रूप में सामुदायिक रेडियो की परिभाषा के भाग के रूप में ज्यादातर कानूनों में सामाजिक लाभ, सामाजिक उद्देश्य, सामाजिक प्राप्ति जैसे वाक्यांश शामिल किये गये हैं। किन्तु मोटे तौर पर किसी छोटे समुदाय द्वारा संचालित, कम लागत वाला रेडियो स्टेशन जो किसी समुदाय के हितों, उसकी पसंद और उनके विकास के दृष्टिकोण को रखते हुए ग़ैरव्यावसायिक प्रसारण करता है, सामुदायिक रेडियो केन्द्र कहलाता है| 21वीं सदी मे मीडिया की बाढ़ सी आ गयी ऐसे मे सामुदायिक रेडियो के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसके अव्यवसायीकता को लेकर होती नज़र आती हैं| आज भारत में जहां एक तरफ मीडिया हर साल तरक्की की नई नई ऊंचाईंयां छू रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ एक बड़ी आबादी सामुदायिक रेडियो के नाम से भी परिचित तक नहीं है । कई जानकार इसका कारण सामुदायिक रेडियो के दायरे छोटा होना और दूसरे इसे चलाने और इससे फायदा पाने वालों का बेहद आम और स्थानीय होना बताते हैं| भारत के संदर्भ मे हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस रेडियो की ताकत हमारी और आपकी सोच से भी परे है। क्योंकि इसका संचालक, कार्यकर्ता और उपभोक्ता वो तबका है जो इस देश की चुनाव प्रक्रिया में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। प्रस्तुत शोध पत्र में हम सामुदायिक रेडियो का ग्रामीण विकास मे होने वाले योगदान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए वर्तमान मे विभिन्न प्रान्तों मे सक्रिय सामुदायिक रेडियो की भूमिका को जानने की कोशिश करेंगे |
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